शिमला उच्च न्यायालय के आदेश के बाद कुल्लू जिले के सबसे प्रसिद्ध ट्रेक खीरगंगा से कैफ़े और कैंप मालिकों ने पलायन शुरू कर दिया है. वन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार शिमला उच्च न्यायालय ने कैफ़े और कैंप के मालिकों को जगह खाली करने के लिए 2 महीने का समय दिया था. समय सीमा पूरी होने के बाद कैंप और कैफ़े मालिकों ने खीरगंगा से अपने कैंप और कैफ़े हटाने शुरू कर दिए हैं.
पार्वती खंड के वन अधिकारी हीरालाल राणा ने बताया कि खीरगंगा वन्य क्षेत्र का हिस्सा है जिसके कारण किसी तरह कि व्यावसायिक गतिविधियां चलने कि अनुमति नहीं है. इसी कारण इस जगह से सभी तरह के स्थायी अस्थायी ढांचों को साफ़ करने का निर्णय लिया गया है.
खीरगंगा गरम पानी के चश्मे के लिए प्रसिद्ध है. भारी संख्या में पर्यटकों कि आवाजाही के कारण यहाँ पर 50 से अधिक कैफ़े बना दिए गए थे. पर्यटन गतिविधियों के कारण वहां के पर्यावरण पर काफी बुरे प्रभाव पड़ रहे थे.
पिछले 2 सालों से हीलिंग हिमालय नमक एक संस्था ने खीरगंगा ट्रेक पर कई सफाई अभियान चलाये और हर बार भारी मात्रा में प्लास्टिक इकठ्ठा करके वापिस लाये. संस्था के संस्थापक प्रदीप सांगवान ने बताया कि खीरगंगा में इस हद तक पर्यटन गतिविधियों व्यावसायिक हो चूका था कि सड़क न होने के बावजूद स्थायी और पक्के ढांचे बना दिए गए थे.
हालाँकि पर्यटन गतिविधियों पर किसी तरह कि रोक नहीं लगाई गयी है. लेकिन खीरगंगा में अब रहने तथा खाने कि कोई सुविधा नहीं मिल पायेगी. रहने और खाने का इंतज़ाम पर्यटकों को अपने आप ही करना पड़ेगा.
राणा ने बताया कि अब पर्यटकों को खीरगंगा जाने के लिए वन विभाग से परमिट लेना पड़ेगा. परमिट मिलने के बाद ही खीरगंगा पर कैंपिंग कि जा सकेगी.