‘देवभूमि’ यानि देवो की भूमि। देवभूमि के नाम से विख्यात है भारत के दो राज्य, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। दोनों ही पहाड़ी राज्य हैं। भौगोलिक, सांस्कृतिक रूप से, भाषा बोली, खान पान में दोनों में बहुत समानताएं हैं। इसी तरह दोनों ही राज्यों में समानता और है, वो है दैवीय संस्कृति की। इसी संस्कृति के कारण दोनों राज्यों को देवभूमि कहा जाता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे पहाड़ों की देव संस्कृति के बारे में कुछ रोचक बातें।
यूँ तो हिमाचल में बहुत से मदिर हैं जिनमे चामुंडा देवी, नैना देवी, चिंतपूर्णी, हडिम्बा, भीमाकाली प्रमुख हैं। इसके अलावा सैंकड़ों मंदिर हैं देवी देवताओं के। हिमाचल में एक अलग देव संस्कृति है। जोकि मुख्यतः कुल्लू, किन्नौर और शिमला व मंडी के कई इलाकों में देखने को मिलती है।
हिमाचल के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ लगभग हर गाँव में किसी न किसी देवी देवता का मंदिर है। अधिकतर देवी देवताओं के रथ होते हैं जिन्हे सेवकों द्वारा उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। ये देवी देवता अक्सर मेले या त्योहारों में भाग लेने जाते हैं और अपने भक्तों के बुलावे पर आशीर्वाद देने उनके घर भी जाते हैं।
कुल्लू दशहरा में लगभग 300 तो मंडी शिवरात्रि में लगभग 200 देवी देवता भाग लेते हैं।
क्या होता है यहाँ के देवताओं में खास?
देवता के रथ
हर देवी देवता का एक रथ होता है. यह रथ एक खास शैली से लकड़ी का प्रयोग करके बनाया जाता है. हालाँकि विभिन्न क्षेत्रों के देवताओं की अलग बनावट होती है. देवता के रथ पर कई मोहरे (मुख) होते हैं जो अष्टधातु , चांदी, इत्यादि से बनाये जाते हैं. इन रथों को बड़ी सुंदरता के साथ सजाया जाता है. देव रथ में सबसे ऊपर सोना, चांदी या अष्टधातु का छत्र भी होता है. इन रथों को उठा कर कहीं भी ले जाया जा सकता है.
देवता का मंदिर
इन देवी देवताओं के मंदिर सामन्यतः पत्थर और लकड़ी का प्रयोग करके पुरातन शैली में बनाये जाते हैं। हर मंदिर में लकड़ी पर की गयी नकाशी देखने योग्य होती है। इन मंदिरों में श्रद्धालु आशीर्वाद लेने या मन्नत मांगने जाते हैं।
देवता की हार
हर देवता का एक प्रभाव क्षेत्र होता है जिसे देवता की हार कहा जाता है। बहुत से देवता समय समय पर अपनी हार में घूम कर लोगों को आशीर्वाद देते हैं। एक क्षेत्र विशेष एक से अधिक देवताओं की हार का हिस्सा होता है।
देवता का गुर
हर देवता का एक गुर और एक पुजारी होता है। गुर वो इंसान होता है जो देवता की पूजा अर्चना करता है और मान्यता अनुसार वो देवता के साथ संपर्क कर सकता है। देवता के गुर ने लम्बे बाल रखे होते हैं और हिमाचली टोपी और एक खास ओवरकोट जिसे झग्गा कहा जाता है पहने रहते हैं।
देव खेल
देवता का गुर विभिन्न अवसरों पर देव खेल करता है। देव खेल एक तरह का एक नृत्य होता है जिसे गुर ढोल बाजे की धुन पर करता है। जब जब भी देवता ने किसी गाँव, मंदिर में जाना हो या कोई खास पूजा अर्चना करनी हो तो देव खेल की जाती है।
देवता के कारदार
गुर पुजारी के अलावा देवता के सेवक होते हैं जिन्हे कारदार कहा जाता है। जब भी देवता को कहीं ले जाना हो या मंदिर में किसी प्रकार का समारोह हो तो ये कारदार देवता की सेवा करते हैं।
वाद्य यन्त्र
देवता जब भी कहीं जाते हैं या कोई समारोह होता है तो ढोल, शहनाई इत्यादि वाद्य यन्त्र बजाये जाते हैं। देवता के वाद्य यंत्रों में मुख्यतः दो तरह के ढोल, शहनाई और एक खास यन्त्र जिसे काहली और नरसिंगे कहा जाता है, होते हैं। इन वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि पर लोग देवता के साथ नाटी का आनंद लेते हैं।
देव मिलन
जब भी दो देवी देवता आपस में मिलते हैं तो एक दूसरे का अभिवादन करते हैं और गले मिलते हैं। इसे देव मिलान कहा जाता है।
हिमाचल की संस्कृति में देवी देवताओं का बहुत महत्व है। पुराने समय से यहाँ के हर समुदाय या हर गाँव का कुल देवता या कुल देवी होते हैं। मान्यताओं के अनुसार ये देवी देवता इनकी रक्षा करते हैं।
इसी देव संस्कृति के कारण हिमाचल को देवभूमि कहा जाता है, जोकि नाम को सही में चरितार्थ करता है।