लेख

मंडी के घोघरधार में एयरपोर्ट की वकालत करने वाले एक बार यह पढ़ लें

उड़ते हुए जहाज देखना किसे अच्छा नहीं लगता। बचपन से जब भी जहाज के उड़ने की आवाज़ आती थी तो आसमान की ओर टकटकी लगा के ढूंढने लग जाते थे कि ये ससुरा है कहां? अब पास से जहाज देखने को मिल जाए तो कसम से कई जन कम काज छोड़ कर ऐसे बैठ जाएं जैसे जेसीबी की खुदाई देखने बैठ जाते थे।

मंडी जिले में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनना है। हर महीने खबर आ जाती है कि केंद्र ने मंजूरी दी, पैसा स्वीकृत कर दिया। लेकिन हिमाचल सरकार यही तय नहीं कर पा रही कि यह हवाई अड्डा बनाया कहां जाए। शुरुआत में दो तीन जगह सर्वे हुए तो नेरचौक में बनाने पर सहमति बनी। लेकिन हर चीज पर दो तरह के विचार सामने आते हैं, एक समर्थन में, दूसरा विरोध में। तो नेरचौक में भी दो गुट बन गए हैं। अब मुख्यमंत्री ने तकनीकी कारणों का हवाला देकर नेरचौक को भी नकर दिया।
इसी असमंजस के दौर में द्रंग विधानसभा के कुछ नेता जाग जाते हैं कि अड्डा बनाना है तो घोघरधार में ही बने।

एयरपोर्ट बनना कोई बुरी चीज नहीं है लेकिन हम सिर्फ इसके एक पहलू पर विचार करके बोल रहे हैं कि एयरपोर्ट बना दो। अब सुबह शाम जहाज उड़ते और जमीन पर पड़ते देखने का मौका कौन गंवाना चाहेगा? बैठना तो खैर हमने वैसे भी नहीं है तो उड़ते तो देख ही सकते हैं।

अब बात आती है कि एयरपोर्ट क्यों और क्यों नहीं बनना चाहिए। एयरपोर्ट बनना भी जरूरी है। आईआईटी है, टूरिज्म बढ़ेगा। और थोड़ा सा रोजगार भी। लेकिन जब भी ऐसे बड़े प्रोजेक्ट आते हैं तो आम लोगों की वैसे भी कोई सुनता नहीं है लेकिन इसका सबसे ज़्यादा असर उन्हीं लोगों पर पड़ता है। विस्थापन एक ऐसी समस्या है जिसका दर्द सालों साल नहीं जाता है। विस्थापन तो खैर कहीं न कहीं होना ही है। लेकिन यहां मैं बात विशेष रूप से घोघरधार को करना चाहूंगा।

एयरपोर्ट के समर्थक कहते हैं कि बल्ह की ज़मीन उपजाऊ है तो वहां एयरपोर्ट ना बना कर घोघरधार में बनाया जाए क्योंकि यहां तो ज़मीन बंजर है। क्या उन्हें ये नहीं पता कि यहां का किसान भी एक बार में लाखों की सब्जियां बेचता है वो भी बिना सिंचाई की सुविधा के।

दूसरी बात यहां एयरपोर्ट बनाने की बात करने वाले जितने भी लोग है उनका घोघरधार में कोई स्टेक नहीं है। तो बात करना आसान है। अब बात करते हैं स्टेकहोल्डर की। अब एयरपोर्ट का यूं लोगों को क्या फायदा जिनकी ज़मीन ली जाएगी? हैं पैसा मिलेगा लेकिन कितना? घोघरधार का सर्कल रेट 21000 से लेकर 50000 प्रति बिस्वा है। चार गुना मुआवजा भी मिला तो मिलेगा अधिकतम 2 लाख और फिर ये लोग कहीं ज़मीन खरीदने जाएंगे तो 3-4 लाख प्रति बिस्वा से कम ज़मीन नहीं मिलेगी। अभी पुराने मिट्टी के मकानों में रह रहे हैं उसका जितना मुआवजा मिलेगा उससे अधिक नया मकान बनाने में लग जाएगा। तो के देकर हाथ में 4 पैसा ही बचेगा। और घोघरधार के बराबर उपजाऊ जमीन कहां ढूंढेंगे? साल में खेती से होने वाली आमदनी भी गई।

रोज़गार ज़रूर बढ़ेगा। लेकिन इसकी गारंटी कौन लेगा की रोजगार पर पहला हक उनका हो जिनकी ज़मीन ली जाएगी और दूसरा दरंग विधानसभा के लोगों का। होगा ये कि सिर्फ टैक्सी को यूनियन बना के नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन एयरपोर्ट के अंदर हरेक काम बड़ी कंपनियों को आउटसोर्स होगा जो लोग कहां से लाते हैं उसपर किसी का नियंत्रण नहीं होगा। जैसा कि बद्दी नालागढ़ में 85% हिमाचली की शर्त होने के बाद भी 90% लोग बाहरी हैं।

एयरपोर्ट से विकास नहीं होता है, एयरपोर्ट विकसित जगहों की जरूरत है। घोघरधार के लोगों को ज़रूरत है एक अच्छी सिंचाई योजना की जिससे वहां अनाज और सब्जियों की पैदावार बढ़ सके। और अगर बजौरा बरोट बीड़ टूरिस्ट सर्किट बना कर उसे इको टूरिज्म के तौर पर विकसित किया जाए तो घोघरधार के साथ साथ पूरी चौहार घाटी के लोगों को आजीवन रोज़गार मिल सकता है।

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