चुनाव प्रचार थम चुका है, सभी स्टार प्रचारक जा चुके हैं और मतदान का दिन आ गया है. कल वीरवार के दिन सभी प्रत्याशियों और विधानसभाओं के भविष्य का फैसला इ.वी.एम. में बंद हो जायेगा. जोकि 18 दिसम्बर को लोगों के सामने लाया जायेगा कि कौन इस बार विधानसभा का द्वार देख पायेगा कौन नहीं.
बड़े जोरों शोरों से चुनाव प्रचार हुआ, हालाँकि पहले के चुनावों के मुकाबले इस बार वो शोर शराबा, हल्ला गुल्ला नहीं देखने को मिला. सड़कों पर लटकी झालरे, दीवारों पे टंगे पोस्टर और सड़के के दाएं बाएं वोट मांगने के लिए कि हुई लीपा पोती काम ही देखने को मिली. इस बार जो प्रचार कुछ न्य हुआ वो था बाइक व कार रैलियां. हर उम्मीदवार कि कार रैली के बाद तुलना होती रही कि उसकी रैली में इतनी कारें थीं तो इसकी रैली में इतनी.
चुनाव आयोग ने समय काम दिया था जिस कारण उम्मीदवारों को 15-20 दिन से ज़्यादा समय नहीं मिला प्रचार के लिए. तो बहुतायत में चुनावी रैलियां भी नहीं हुई. सभी पार्टियों कि रैलियां स्टार प्रचारकों तक ही रह गयी. बाकि उम्मीदवारों ने छोटी-छोटी सभाएं करके ही काम चला लिया. कुछ ने डोर-टू-डोर भी किया होगा कुछ जगहों पर लेकिन बहुत सी जगहों पर पर उम्मीदवार पहुंच भी नहीं पाए.
इस चुनाव प्रचार में एक बोल जो बार बार सुनने को मिला वो है विकास. कांग्रेसी कहता हमारी पार्टी ने छप्पर फाड़ के विकास करवाया तो भाजपाई कहता कि इन्होने तो कुछ किया ही नहीं. विकास तो भाजपा कि सर्कार ने ही कराया था कांग्रेस ने तो प्रदेश को लूटा ही है. ऐसा ही हाल हर विधानसभा के उम्मीदवारों का है. विधायक कहता उसने बहुत विकास कराया तो विपक्षी पार्टी का उम्मीदवार कहता विधायक ने कुछ भी नहीं करवाया.
फिर एक बात पर दोनों पार्टियां तथा सभी उम्मीदवार एक मत हो जाते. वह है विकास के वायदे. कि अगर वो जीता या उसकी पार्टी कि सरकार बनी तो ऐसा विकास करवाएंगे कि लोगों की आँखें चौंधियां जाएगी.
अच्छा, विकास तो करवाया होगा या आगे करवाएंगे, लेकिन किसी ने ये नहीं समझाया की विकास होता क्या है? क्या कोई ऑफिस खोल लेने मात्रा से विकास हो जाता है? अस्पताल बना लेने मात्र से स्वास्थ्य सुविधा मिल जाती है? स्कूल खोल लेने भर से शिक्षा सुधर जाती है? सड़कें बनती हैं लेकिन उनकी हालत क्या है? पक्का होने के दूसरे महीने से उखड़ना शुरू हो जाती है. उसके बाद हो रह जाता है वो हैं गड्ढे. स्कीम की घोषणा हो जाती है लेकिन बनते बनते साड़ियां निकल जाती हैं. क्या इसी को विकास कहते हैं?
अब मान लेते हैं कि आने वाले 5 सालों में विकास होगा. लेकिन कैसे? वो ऐसा क्या करेंगे और कैसे करेंगे? यह दृष्टिकोण कोई भी उम्मीदवार मतदाताओं के सामने नहीं रख पाया. दोनों बड़ी पार्टियों में से कांग्रेस ने लम्बा चौड़ा घोषणा पत्र रखा तो भाजपा ने छोटा सा विज़न डॉक्यूमेंट. इनमें प्रदेश के स्तर पर नीतियों और घोषणाओं का ज़िक्र किया गया लेकिन विधानसभा क्षेत्र का विकास कैसे होगा, ये दृष्टिकोण जनता के सामने रखने की ज़रूरत किसी ने नहीं समझी. हालाँकि मैंने अपवाद के रूप में शिमला ग्रामीण से भाजपा के उम्मीदवार डा. प्रमोद शर्मा को अपना विज़न प्रेस के सामने रखते सुना था. और किसी ने ऐसा किया हो लगता नहीं. तो मतदाता कैसे निर्णय ले कि कौन सा उम्मीदवार सही में क्षेत्र के लिए कुछ कर सकता है?
अब इसका समय तो गया तो अब प्रदेश के सभी मतदाताओं से एक अपील है कि कल वोट देने ज़रूर जाएँ और सोच समझ के एक योग्य उम्मीदवार को वोट दें. वो उम्मीदवार कौन सी पार्टी का है यह मायने नहीं रखता लेकिन उसकी योग्यता और काम करने कि नीयत ज़रूर मायने रखती है.