9 नवम्बर को होने वाले विधानसभा चुनावों में कुल 158 करोड़पति उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और 61 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. हिमाचल प्रदेश इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स संस्थाओं ने हिमाचल में चुनाव लड़ रहे सभी 338 उम्मीदवारों द्वारा दाखिल किये गए दस्तावेजों को खंगाल कर एक रिपोर्ट जारी की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक 338 में से 158 उम्मीदवार करोड़पति हैं. इस तरह कुल उम्मीदवारों के 47% उम्मीदवार करोड़पति हैं और सभी उम्मीदवारों की औसत सम्पति 4.07 करोड़ बनती है. कांग्रेस पार्टी के सबसे अधिक 68 में से ५९ जबकि भाजपा की 68 में से 47 उम्मीदवार करोड़पति हैं. वहीँ बसपा के 6, कम्युनिस्ट(मा.) के 3, कम्युनिस्ट पार्टी का एक और 36 निर्दलीय उम्मीदवारों के पास 1 करोड़ से अधिक सम्पति है.
चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों में चौपाल से भाजपा उम्मीदवार बलवीर शर्मा 90 करोड़, और शिमला ग्रामीण से कांग्रेस के विक्रमादित्य सिंह 84 करोड़ के साथ सबसे अमीर उम्मीदवार हैं. कुल 5 उम्मीदवारों ने 1 करोड़ से अधिक वार्षिक सम्पति घोषित की है. इनमे परिवहन मंत्री जी.एस.बाली ने सबसे अधिक 3.42 करोड़ सालाना आय घोषित की है. वहीँ 71 उम्मीदवारों ने अपनी आय घोषित ही नहीं की.
सम्पति के आलावा इस रिपोर्ट से जो बड़ी बात सामने आ रही है वह है आपराधिक मामले. इस रिपोर्ट के अनुसार कुल 61 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमे से 31 पर दर्ज मामले गंभीर अपराधों के श्रेणी में आते हैं. आपराधिक मामलों के मामले में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे हैं जिसके कुल 23 उम्मीदवारों ने कहा है की उन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, वहीँ कांग्रेस के 6, सी.पी.आई.(मा) के 10, बसपा के 3 और 16 आजाद उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
कुल 120 उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता पांचवी से बाहरवीं के बीच है जबकि 214 उम्मीदवारों ने स्नातक या उससे आगे तक की पढ़ाई की है. एक उम्मीदवार ऐसा भी है जिसने स्कूल की शक्ल नहीं देखी जबकि एक ने यह बताना ज़रूरी नहीं समझा.
155 उम्मीदवारों की आयु 25 से 50 वर्ष के बीच में है जबकि 171 की 51 से 83 के बीच. कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार वीरभद्र सिंह (83 वर्ष) सबसे बूढ़े और उनके बेटे विक्रमादित्य (28 वर्ष) सबसे जवान उम्मीदवार हैं.
इस चुनाव में कुल 16 मिलाएं भी चुनाव मैदान में हैं. भाजपा की तरफ से कुल 6 जबकि कांग्रेस से 3 महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं. महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की वकालत करने वालों के हिसाब से ये आंकड़े ठीक नहीं हैं.