उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के बाद हिमाचल के कुछ संगठनों ने हिमाचल के कुछ शहरों के नाम बदलने की मुहीम छेड़ दी और भावनाओं में बह कर मुख्यम्नत्री साहब ने भी कह दिया कि जो नाम हमें ब्रिटिश हुकूमत कि याद दिलाते हैं उनके नाम बदलने पर विचार किया जायेगा.
तो सबसे पहले बारी आयी शिमला की. हिमाचल की राजधानी और पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर शिमला दुनियभर में एक जाना माना पर्यटन स्थल है. शिमला नाम काली माँ की अवतार कही जाने वाली श्यामला माता के नाम पर पड़ा था.
इलाहाबाद के पुनर्नामांकन के बाद कुछ संगठनों के द्वारा शिमला का नाम श्यामला किये जाने की मांग की गयी और प्रदेश सरकार ने भी इस बात को गंभीरता से ले लिया और कहा की इसके बारे में जनता से भी राय ली जाएगी. हालाँकि कल एक प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने इस बात को नकार दिया कि उन्होंने शमला का नाम बदलने की बात कही है. लेकिन फिर भी हम अपनी राय जनता और सरकार के समक्ष रखना चाहते हैं. इस सन्दर्भ में कुछ बिंदु इस प्रकार हैं.
- सबसे पहली बात कोई भी काम करने से पहले उसका एनालिसिस किया जाना ज़रूरी है कि काम कितना ज़रूरी है, उसकी प्राथमिकता क्या है दूसरे कामों के बदले और उसे करने में खर्चा कितना आएगा? ज़रूरत क्या है ये बात समझ से परे है. प्राथमिकता सरकार को तय करनी है और बजट कितना चाहिए इसका अनुमान सरकार ने लगा ही लिया होगा. लेकिन पहले से क़र्ज़ में याद हुए राज्य के लिए किसी शहर नाम बदलने पर ही करोड़ों रुपये खर्च करना कहाँ की समझदारी है?
- दूसरी बात ज़रूरत क्या है? इलाहाबाद का नाम बदलने के पीछे तर्क दिया गया कि वो नाम मुगलों ने प्रयाग से बदला कर रखा था तो मुगलों की दी गयी कोई चीज़ योगी जी को चाहिए ही नहीं तो नाम बदल दिया अब शायद मुगलों द्वारा बनाई इमारतों को भी तुड़वा देंगे. वहीँ शिमला कि बात करें तो शिमला शहर को बसाया तो अंग्रेज़ों ने था लेकिन नाम शिमला की ही श्यामला माता के नाम पर रखा शायद अंग्रेजी एक्सेंट में श्यामला बोलने में मुश्किल आयी होगी तो आसानी के लिए शिमला कर दिया. अब आज हम अंग्रेज़ों द्वारा बनाई गयी इमारतों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके द्वारा बनाई गयी कालका शिमला रेल और एडवांस्ड स्टडीज जैसी धरोहरों के नाम पर छाती फुला देते हैं तो उनके द्वारा बदले हुए नाम से क्या नुकसान हो रहा है शिमला का?
- किसी भी भाषा में डिराइव्ड या व्युत्पत(शुद्ध हिंदी में हमारा भी हाथ कमज़ोर है, शायद यही कहते हैं) शब्दों का खासा महत्व है. एक शब्द से दूसरा शब्द बनता रहा और भाषा का विस्तार होता गया. यहाँ तक कि एक भाषा के शब्द भी दूसरी भाषाओँ के शब्दों से बने. वैसे ही शिमला भी श्यामला से बना. नाम में बदलाव तो आया लेकिन कहा तो अभी भी यही जाता है कि शिमला नाम श्यामला माता के नाम पर पड़ा. तो इसमें कोई भवनात्मक तर्क भी नहीं है कि अंग्रेज़ों ने अंग्रेजी नाम थोप दिया. वैसे ही मंडी, कुल्लू आदि कई जिलों का नाम किसी दूसरे नाम से बना है तो क्या अब सबके नाम बदले जायेंगे?
- ‘बहुत सारी चीज़ें अंग्रेज़ों कि गलत बातों का स्मरण कराती है’ ये मुख्यमंत्री साहब के बोल थे. शिमला नाम से ऐसी क्या गलत बातों की याद आती है? और अग्रेंजों के दिए नाम से उनकी गलत बातों का स्मरण होता है तो उनके द्वारा बनाई गयी कालका शिमला रेल लाइन जो आज एक विश्व धरोहर है, शिमला का एडवांस्ड स्टडीज, जोगिन्दर नगर का शानन पावर हाउस और पठानकोट-जोगिन्दर नगर रेल लाइन. मंडी का विक्टोरिया पुल इत्यादि क्या याद दिलाते हैं? उन्हें भी उखाड़ फेंकिए.
नाम बदलने का समर्थन करने वालों के लिए एक सुझाव है. कि नाम में क्या रखा है? बलवान सिंह हमेशा बलवान नहीं होता और हिम्मत सिंह के पास भी हिम्मत कि कमी हो सकती है, ज़रूरी नहीं बुद्धि सिंह नाम रखने से इंसान में बुद्धि आ जाएगी. इंसान कि पहचान काम से होती है और शहर की पहचान वहां की आवो-हवा, साफ-सफाई, लोगों की खुशहाली से होती है. इसलिए नाम में क्या रखा है साहब काम कीजिये, नाम जो भी है वो रोशन ही होगा.
हां अगर नाम बदलने मात्र से विकास होता हो, गरीबी दूर होती हो, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक होती हो तो शिमला क्या सभी जिलों, शहरों के नाम बदल दीजिए.
इसके बीच हमने अपने फेसबुक पेज पर इसी बात पर एक पोल करवाया और कुछ दूसरे पेज के पोल का अध्ययन किया तो लगभग 80 से 90% लोग शिमला का नाम श्यामला करने के पक्ष में नहीं हैं.