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रोहतांग सुरंग के दोनों छोर आपस में मिले, 2019 तक होगा लोकार्पण

बुधवार की शाम लगभग साढ़े छह बजे 8.8 कि.मी. लम्बी सुरंग के बीचों बीच एक ब्लास्ट के होते ही सुरंग के उत्तरी और दक्षिणी छोर आपस में मिल गए. बरसों से इस सुरंग का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे लाहौल निवासियों के लिए इस से बड़ी ख़ुशी की खबर नहीं होगी जबकि पहले से ही यह प्रोजेक्ट अनुमानित समय से 2 साल पीछे चल रहा है.

सुरंग के दोनों छोर मिलते ही दोनों तरफ काम कर रहे अधिकारी और मजदूरों ने एक दूसे से हाथ मिला कर बधाई दी. आखिर इस प्रोजेक्ट का सबसे मुश्किल चरण पूरा हो गया. अब इस सुरंग को अंतिम रूप देने और आपातकालीन निकासी, वेंटिलेशन उपकरण इत्यादि लगाने के बाद 2019 तक इस सुरंग को सामान्य यातायात के लिए खोल दिया जायेगा.

बीआरओ के लिए अगली चुनौती होगी सुरंग के दोनों छोर नार्थ और साउथ पोर्टल तक पहुंचने वाले रास्तों को सुरक्षित बनाना. इन रास्तों पर 40 ऐसे स्थान हैं जहाँ हिमस्खलन कि सम्भावना हो सकती है. इन स्थानों पर हिमस्खलन प्रतिरोधी ढांचे बनाये जाने हैं. इस प्रकार का एक अवलांच कंट्रोल स्ट्रक्चर पहले ही बनाया जा चूका है.

बीआरओ के अधिकारियों ने हालांकि दोनों छोर जुड़ने की पुष्टि नहीं की है लेकिन रोहतांग सुरंग के कर्मियों ने दोनों छोर मिलने की बात कही है. बीआरओ रोहतांग सुरंग परियोजना के चीफ इंजीनियर कर्नल चंद्र राणा ने लोगों से आग्रह किया कि वो जल्दबाजी में भावुक न हों। बीआरओ अपना काम कर रहा है और शीध्र ही इसकी विधिवत घोषणा कर दी जाएगी.

इस सुरंग का निर्माण कार्य 2010 में शुरू किया गया था और इसे 2015 तक पूरा करने का लक्ष्य था लेकिन अभी तक यह प्रोजेक्ट निर्धारित समय से 2 साल पीछे चल रहा है और अब इसे 2019 तक आम लोगों के लिए खोले जाने का अनुमान है. पहले इस प्रोजेक्ट के लिए रु. 1355 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया था जोकि अब बढ़कर रु.4000 करोड़ पहुंच गया है.

क्यों है यह सुरंग ज़रूरी?

यह सुरंग लाहौल के लोगों के लिए तथा देश कि सुरक्षा कि दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. जनजातीय लाहौल स्पीति क्षेत्र रोहतांग दर्रे से देश के दूसरे भागों से जुड़ा हुआ है. लेकिन सर्दियों में बर्फ़बारी के कारण रोहतांग दर्रा यातायात के लिए बंद हो जाता है जिस कारण लाहौल के लोग पुरे देश से कट जाते है. इन 4-5 महीनों में स्वास्थ्य जैसी आपातकालीन सेवाओं के लिए अथवा लाहौल आने-जाने के लिए हवाई सेवाओं का सहारा लेना पड़ता है जोकि बहुत सीमित तथा बहुत महंगी होती है या पैदल रोहतांग पार करके आना पड़ता है. लाहौल में नौकरी करने वाले कर्मचारियों को भी आने जाने के लिए भरी समस्या का सामना करना होता है.

इस रस्ते का उपयोग लेह लद्दाख आने जाने के लिए भी होता है. भारतीय सेना गर्मियों में रोहतांग होकर लेह पहुंचती है. लेकिन रोहतांग बंद होने के कारण सेना कि आवाजाही भी बंद हो जाती है. चीन सीमा से जुड़े कई अन्य पोस्ट भी इसी रस्ते से जुडी हुई हैं.
इस सुरंग के बन जाने से लाहौल पूरा वर्ष देश से जुड़ा रहेगा जिसका लाभ लाहौल के लोगों के साथ भारतीय सेना को भी होगा. इस सुरंग से मनाली से केलोंग की दूरी भी 48 कि.मी. कम हो जाएगी. इसके आलावा लाहौल में पर्यटन के बढ़ने कि भी सम्भावना है.

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