कुछ लोग होते हैं पागल, सनकी, जुनूनी जो लगे रहते हैं कुछ बदलाव लेन के लिए जिसके लिए उन्हें व्यवस्था से भी जूझना पड़ता है. ऐसे ही एक इन्सान हैं धर्मशाला के संजय शर्मा. लोग इन्हे बड़का भाऊ के नाम से जानते हैं.
प्रदेश भर में कहीं भी जब किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुनने को मिलता है जिनके पास जीवन यापन के साधन नहीं, रहने के लिए घर नहीं, विकलांग है, पढाई के लिए पैसे नहीं है, इलाज करवाने के पैसे नहीं है या प्रशासन द्वारा उपेक्षित हो और जो प्रशासन के आगे हाथ फैला के हार मान चुके हैं उनकी मदद के लिए पहुँच जाते हैं बड़का भाऊ. उनकी किसी भी तरह सहायता करके या उनकी आवाज़ बन कर उन्हें उनका हक़ दिलाने के लिए उनकी बात शासन – प्रशासन तक पहुंचाते हैं. प्रदेश के हरेक कोने में कोई न कोई व्यक्ति ज़रूर मिल जायेगा जिसकी मदद बड़का भाऊ ने की हो.
रास्ते में कोई गरीब बेसहारा दिख जाये तो काहिर खबर पूछने रुक जाते हैं बड़का भाऊ. कई बेसहारा या अनाथ बेटियों को गोद ले रखा है. हाल ही में बंजार हादसे में मारे गए एक पत्रकार की बेटी की परवरिश और पढ़ाई लिखाई का ज़िम्मा भी बड़का भाऊ ने उठा लिया. जहाँ भी उन्हें कोई बेसहारा दिख जाये किसी न किसी तरह उनकी सहायता करने में जुट जाते हैं बड़का भाऊ और उनकी टीम. चाहे इसके लिए शासन प्रशासन से ही क्यों न लड़ना पड़े.
प्रदेश भर में कहीं भी जब किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुनने को मिलता है जिनके पास जीवन यापन के साधन नहीं, रहने के लिए घर नहीं, विकलांग है, पढाई के लिए पैसे नहीं है, इलाज करवाने के पैसे नहीं है या प्रशासन द्वारा उपेक्षित हो और जो प्रशासन के आगे हाथ फैला के हार मान चुके हैं उनकी मदद के लिए पहुँच जाते हैं बड़का भाऊ. उनकी किसी भी तरह सहायता करके या उनकी आवाज़ बन कर उन्हें उनका हक़ दिलाने के लिए उनकी बात शासन – प्रशासन तक पहुंचाते हैं. प्रदेश के हरेक कोने में कोई न कोई व्यक्ति ज़रूर मिल जायेगा जिसकी मदद बड़का भाऊ ने की हो.
रास्ते में कोई गरीब बेसहारा दिख जाये तो काहिर खबर पूछने रुक जाते हैं बड़का भाऊ. कई बेसहारा या अनाथ बेटियों को गोद ले रखा है. हाल ही में बंजर हादसे में मारे गए एक पत्रकार की बेटी की परवरिश और पढ़ाई लिखाई का ज़िम्मा भी बड़का भाऊ ने उठा लिया. जहाँ भी उन्हें कोई बेसहारा दिख जाये किसी न किसी तरह उनकी सहायता करने में जुट जाते हैं बड़का भाऊ और उनकी टीम. चाहे इसके लिए शासन प्रशासन से ही क्यों न लड़ना पड़े.
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हाल ही बड़का भाऊ और उनकी टीम काफी चर्चा में रहे. विधायकों द्वारा अपने यात्रा भत्ते बढ़ाये जाने को लेकर बड़का भाऊ और उनकी टीम ने प्रदेश के सुंदरनगर, कांगड़ा, ऊना सहित कई स्थानों में नेताओं के लिए कटोरा लेकर एक रूपये भीख मांगकर अपना विरोध प्रकट किया. जिस कारण यह मुद्दा सोशल मीडिया पर भी बहुत छाया रहा.
इस विरोध से गुस्साए कुछ नेताओं को यह बात हज़म नहीं हुई तो तथाकथित आठ विधायकों ने नारकोटिक्स विंग धर्मशाला में बतौर कांस्टेबल तैनात बड़का भाऊ की पत्नी अनीता शर्मा के तबादले के लिए डीओ नोट भेजे. जिसके बाद अनीता शर्मा का तबादला धर्मशाला से छठी रिज़र्व बटालियन कोलर में किये जाने के आदेश हुए.
इस आदेश के कारण सोशल मीडिया पर सरकार की बहुत किरकिरी हुई. संजय शर्मा ने सरकार के इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी. उच्च न्यायालय ने मामले में आठ डीओ नोट को अनुचित ठहराते हुए इस आदेश को निरस्त कर दिया.
लेकिन इस सबके बावजूद बड़का भाऊ का हौसला नहीं टुटा है. वो कहते हैं कि समाज सेवा कि उनकी यह मुहीम जारी रहेगी. सच में यह आज के ज़माने कि सचाई है अगर कुछ अच्छा करने जाओ तो यह बात कई लोगों को हज़म नहीं होती. सरकारों का विरोध करना तो खैर धीरे धीरे राष्ट्रद्रोह जैसा बनता जा रहा है. लेकिन अगर कोई निस्वार्थ भाव से अच्छा करने जाता है तो साथ देने वालों कीभी कमी नहीं होती. इस बात का अंदाज़ा बड़का भाऊ की फेसबुक प्रोफाइल देखकर चल जाता है.
और अगर बड़का भाऊ और शिमला के सरबजीत सिंह बॉबी जैसे 8-10 सनकी लोग और हो जाये तो हर गरीब को एक सहारा मिल जायेगा.