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काफल- फल एक फायदे अनेक

काफल पाके बोदिये रई तोसा रे बणा हो

यह एक पारम्परिक हिमाचली गाना है. जिसमे बताया जा रहा है की काफल पक गए हैं. काफल पहाड़ों में पाया जाने वाला एक जंगली फल है. काफल बेहद ही स्वादिष्ट होने के साथ शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद फल है. काफल का वैज्ञानिक नाम है माइरिका एस्कुलेंटा (Myrica esculenta). काफल को ‘बॉक्स मिर्टल’ और बेबेरी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है. काफल हिमाचल, उत्तराखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में पाया जाता है.

छोटे छोटे दाने वाला काफल खाने में खट्टा मीठा होता है. पूरी तरह से पक्का हुआ काफल का दाना गहरे रंग का होता है जोकि खाने में मीठा होता है. जब आधा पक्का काफल हरे से गुलाबी रंग का होता है जो खाने में खट्टा होता है. तो इस तरह काफल में खट्टा मीठा स्वाद होता है. खास बात यह है की काफल को गुठलियों के साथ खाया जाता है. इसे पीसे हुए नमक के साथ खाने से इसका स्वाद और बढ़ जाता है.

अक्सर लोग पहाड़ों से किरड़ों या टोकरों में भर कर काफल को गाँव तथा शहरों तक पहुंचते हैं. काफल को ज़्यादा दिन तक नहीं रख सकते इसलिए इन्हे तोड़ कर बाजार पहुँचाना होता है. ताकि यह फल ताज़ा ताज़ा लोगों तक पहुंच सके.

बेहतरीन स्वाद के आलावा काफल खाने के और कई फायदे हैं. काफल के फल में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं. काफल में विटामिन और आयरन काफी मात्रा में पाया जाता है. यह एक बेहतरीन एंटी ऑक्सीडेंट भी है. काफल के फल के आलावा पत्तियों तथा छाल में भी बहुत से औषिधीय गुण पाए जाते हैं.

  • काफल पाचन प्रक्रिया को तंदरुस्त करने के लिए बहुत लाभकारी है. काफल का रास पेट के दूसरी बिमारियों जैसे अल्सर, अतिसार, गैस, कब्ज़ एसिडिटी के लिए भी फायदेमंद होता है.
  • काफल की छाल का अदरक तथा दालचीनी के साथ मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े की बीमारियों के लिए बहुत लाभदायक होता है।
  • इसके पेड़ की छाल तथा अन्य औषधियों से निर्मित काफलड़ी चूर्ण का अदरक के जूस तथा शहद के साथ उपयोग करने से गले की बीमारी, खांसी तथा अस्थमा जैसे रोगों रहत मिलती है।
  • काफल के पेड़ की छाल का पाउडर बनाकर उपयोग करने से ज़ुकाम तथा सरदर्द में आराम मिलता है।
  • छोटे छोटे दाने वाला काफल असल में बहुत बड़े गुणों से भरा होता है तो कभी बाजार या सड़क किनारे काफल मिल जाये तो इसका स्वाद ज़रूर चखें.
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