आए दिनों सरकार महिलाओ के सशक्तिकरण के लिए नई नई योजनाए बनाती रहती है। लेकिन क्या सच में महिलाओं को इसका पूरा पूरा लाभ मिल पाता है ? हाल में ही जारी हुई ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत को 144 देशो में 108 वां स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि पिछले वर्ष इस सूचि में भारत का स्थान 87 था। यानी की इस वर्ष 21 स्थान की गिरावट आयी है जो की बेहद चिंता का विषय है।
आखिर क्यों महिलाओं की स्थिति नहीं सुधर रही है ? इसके लिए कौन जिम्मेवार है ? ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट को वर्ल्ड इकनोमिक फोरम जारी करता है। यह रिपोर्ट 2006 में पहली बार जारी की गयी थी। तब से भारत को इस वर्ष सबसे कम स्थान मिला है। यह रिपोर्ट दर्शाती है की इस तरह से तो भारत की महिलाओं को अभी आदमियों की बराबरी के लिए 200 -300 वर्ष लगेंगे।
क्या कारण है की उच्च शिक्षा हासिल करने के बावजूद भी महिलाओं की आर्थिक कार्यो में कुल 27 प्रतिशत भागीदारी है। सरकार के लिंग अनुपात बराबरी की योजनाए भी असफल होती नज़र आ रही है। 1991 के बाद जब से हमारी आर्थिक व्यवस्था में सुधार होना शुरू हुआ हुआ है, तब से अब तक 27 वर्ष के बाद भी महिलाओं की आर्थिक कार्यों में भागीदारी कम ही है। आखिर क्यों?
ज्यादातर महिलाएं घर के कामकाज ही संभालती है। जिनके लिए उन्हें कोई भी मेहनताना नहीं मिलता है। उनके कामो की कोई पहचान नहीं है। और इसको जीडीपी में भी नहीं शामिल किया जाता है। सरकार महिलाओं के लिए नई नई योजनाए बनाती है। फिर भी क्यों इनकी स्थिति में सुधार नहीं आ रहा है? इसके लिए सरकार को चाहिए की महिलाओं के लिए जो भी योजनाए शुरू की गयी है उनका सही से मूल्यांकन किया जाए और सही योजनाबद्ध तरीके से लागु किया जाये। क्योँकि महज योजनाएं बनाने से क्या लाभ होगा अगर वो सही से लागू नहीं की जाए।
भारतीय संसद में महिला विधायक कुल 12 प्रतिशत है। सरकार को महिला विधायकों की संख्या बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए और लोकतंत्र में भी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। आप भी अपने विचार बता सकते है कि किस तरह से महिलाओ की स्थिति में सुधार आ सकता है। अपने विचार नीचे दिए हुए कमेंट बॉक्स में लिखें।