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शिमला के मरीज़ों के लिए फरिश्ता सरबजीत सिंह ‘वेहला’ बॉबी

इस दुनिया में अक्सर लोगों का वक़्त अपने रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करने में ही निकल जाता है। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर मानवता की सेवा में अपना जीवन लगा देते हैं। ऐसे ही एक इंसान हैं शिमला के सरबजीत सिंह बॉबी।

इनको शिमला में वेहला बॉबी के नाम से जाना जाता है। हाँ सच में ये वेहले तो हैं ही, न घर में काम न दुकान में। लेकिन फिर हम इनका ज़िक्र यहाँ क्यों कर रहे हैं? वो इनके काम की वजह से ही। सरबजीत सिंह बॉबी का काम है सेवा, मानवता की।

शिमला के इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज व कमला नेहरू कैंसर अस्पताल में प्रदेश भर से हज़ारों मरीज़ इलाज करवाने आते हैं। इनमे से अधिकतर गरीब या मध्यमवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं और इलाज में लाखों रूपये खर्च कर चुके होते हैं। इन लोगों के लिए सरबजीत किसी फ़रिश्ते से कम नहीं है। सरबजीत की संस्था ऑलमाइटी ब्लेसिंग्स, आईजीएमसी, कमला नेहरू अस्पताल और डेंटल कॉलेज के मरीजों तथा तीमारदारों के लिए हर रोज़ लंगर लगाती है। लगभग 3 हज़ार लोगों के लिए सुबह की चाय, बिस्किट से लेकर दोपहर और रात के खाने तक का प्रबंध इस संस्था द्वारा किया जाता है।

शुरुआत कमला नेहरू अस्पताल में मरीज़ों को चाय पिलाने से हुई थी जो आज एक बहुत बड़ी मुहीम का रूप ले चुकी है। इस लंगर की खास बात यह है कि इसमें पुरे शिमला से रोटियां इकठा करके परोसी जाती है। जिला भर में कई रोटी बैंक बनाये गए हैं जहाँ रोटियां इकठा करके उन्हें अस्पताल तक पहुंचाया जाता हैं। सरबजीत जी ने इसकी शुरुआत स्कूली बच्चों के माध्यम से कि थी। कुछेक स्कूलों में जाकर बच्चों को अपने लंच के साथ एक रोटी ज़्यादा लेन के लिए प्रेरित किया और फिर उन्हें इकठा करके अस्पताल पहुंचाया जाने लगा. धीरे धीरे लोगों ने खुद से इसमें सहयोग करना शुरू किया और आज शिमला में 20 से अधिक रोटी बैंक हैं।

यही नहीं सरबजीत की यह संस्था एक फ्री एम्बुलेंस सेवा भी चलाती है। यह एम्बुलेंस सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक कैंसर के मरीजों को कैंसर अस्पताल से इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज, बस स्टैंड और पुरे शिमला शहर के लिए उपलब्ध है।

इसके अलावा लावारिस लाशों को शमशान पहुंचा कर उनका अंतिम संस्कार करना और रक्तदान शिविर लगा कर खून इकठ्ठा करना भी सरबजीत सिंह के नेक कार्यों का हिस्सा हैं।

सरबजीत जैसे लोग उन लाखों लोगों के लिए मिसाल हैं जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठने कि हिम्मत नहीं कर पाते। इंसानियत सबसे बड़ा धर्म हैं और निस्वार्थ भाव से इस धर्म का पालन करने वाले बन्दे विरले ही पैदा होते हैं। अगर हर शहर में एक सरबजीत पैदा हो जाये तो असहाय और गरीब लोगों का जीवन कुछ तो सरल हो सकता हैं। इस नेक काम के लिए सरबजीत सिंह बॉबी जी का बहुत आभार और भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनायें।

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