आगामी विधानसभा चुनाव बेहद ही रोमांचक होने वाले हैं ये पक्का है लेकिन बाजी कौन मारेगा इसमें कुछ संदेह है। नवंबर महीने में हुए उपचुनावों में सभी चार सीटें कांग्रेस ने अपने नाम करके अपनी वापसी की तरफ संकेत दिया था। इन चुनावों से कांग्रेस का तो मनोबल बढ़ा ही था साथ ही जनता को भी संदेश पहुंचा था कि हिमाचल कांग्रेस अभी जीवित है और हिमाचल में बरसों से चली आ रही परिवर्तन को परंपरा को पुनः दोहरा सकती है।
वहीं अति उत्साहित भाजपा के लिए ये चुनाव के वाले अप कॉल थी जिसके तुरंत बाद तेल की कीमतों में कमी जैसे कदम उठाए गए और मुख्यमंत्री के है भाव में भी कुछ परिवर्तन दिखा। धर्मशाला में हुए शीतकालीन सत्र के दौरान तमाम संगठनों से मिलना और उनको आश्वासन देना डैमेज कंट्रोल की तरफ कदम बढ़ते दिखे।
लेकिन राजनीति कब अपनी करवट बदल ले कोई अनुमान नहीं लगा सकता। दो पड़ोसी राज्यों में हुए चुनावों ने प्रदेश की राजनीति के समीकरण भी बदल डाले। उपचुनावों में कांग्रेस को मिले लाभ को इन चुनावों के परिणाम ने धूमिल कर डाला। पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस का 18 सीटों पर सिमटना और उत्तराखंड में भी पार्टी के शर्मनाक प्रदर्शन ने हिमाचल में भी पार्टी की संभावनाओं को झकझोर के रख दिया। जो मनोबल उपचुनावों में बढ़ा था वो पड़ोसी चुनावों ने शून्य कर दिया। जिस तरह कांग्रेस पिछले कुछ समय से शून्य की तरफ अग्रसर है, भविष्य में कोई चुनाव जीत सकती है, बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह बन गया है।
चार राज्यों में जीत के साथ ये चुनाव हिमाचल भाजपा के लिए मनोबल वर्धक बनकर आए। और भाजपा का मिशन रिपीट सार्थक दिखने लगा। लेकिन कहीं न कहीं मुख्यमंत्री साहब, कई मंत्री और विधायकों का रिपोर्ट कार्ड संतोषजनक नहीं है। अफसरों पर पकड़ न होना जय राम जी की सबसे बड़ी कमजोरी बनकर उभरी है और यह बात भाजपा का कैडर भी स्वीकार करता है। वहीं कई विधायकों के टिकट कटने का अनुमान भी सरकार के प्रदर्शन पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है।
लेकिन इन्हीं चुनावों में एक और मजेदार बात हुई। पंजाब में आम आदमी पार्टी की धमाकेदार जीत। पड़ोसी राज्य में जिस तरह सभी बड़े दलों को हराकर आप ने एकतरफा जीत हासिल की पार्टी के प्रदेश में महत्वकांक्षा भी बढ़ गई। प्रदेश में मतदाताओं का एक बड़ा तबका है जो दोनों पार्टियों से नाखुश है और कहीं न कहीं तीसरे दल के लिए नजर बिछाए बैठा है लेकिन किसी विकल्प के न होने से कभी पार्टी बदल के तो कभी नोटा का बटन दबाता रहा। देश में दो राज्यों में सरकार बनाने के बाद प्रदेश में आप तीसरे विकल्प की उम्मीद बनती दिख रही है। मंडी में अरविंद केजरीवाल का रोडशो पार्टी के लिए एक अच्छी शुरुआत है।इस रोडशो को बेशक दोनों पार्टियां असफल बता बता कर खुद को तसल्ली दे रही है। लेकिन जिस तरह भाजपा ने आनन फानन में रात के 12 बजे आप के कुछ नेताओं को पार्टी में शामिल करवाया चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आती है। नेताओं को पार्टी में शामिल करवाने की खींचतान में भाजपा भी बराबर का जोर लगा रही है। हालांकि यहां ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता हुआ दिख रहा है।
हिमाचल दिवस के समारोह में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 125 यूनिट फ्री बिजली, महिलाओं के लिए किराए में छूट और गांवों में मुफ्त पानी की घोषणा करके आम आदमी पार्टी की राह पकड़ ली। लग रहा है कि आप के बढ़ते कदमों को देखकर मुख्यमंत्री साहब कुछ नर्वस हो गए हैं। और हड़बड़ाहट में बिना किसी चर्चा और योजनाओं के घोषणाएं कर दी। यहां तक किराया आधा करने की जानकारी परिवहन मंत्री को नहीं थी। और सुनने में आ रही है कि इन घोषणाओं से मोदी जी और शाह जी भी खुश नहीं है। एक बात साफ है कि आप के आने से समीकरण बिगड़ने का डर सता रहा है।
अब बात करते हैं कि चुनावों में क्या स्थिति हो सकती है। हिमाचल परिवर्तन करने वाला राज्य रहा। इसका कारण है कि मतदाताओं का एक बड़ा तबका है जो किसी भी पार्टी का नहीं है। पांच साल एक पार्टी से तंग आकर यह तबका दूसरी पार्टी की तरफ झुक जाता है। तो बात सबसे पहले करते हैं इस पार्टी की जिसे पुरानी परम्परा अनुसार सरकार बनानी चाहिए, विपक्षी पार्टी कांग्रेस की। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल कि क्या कांग्रेस में सब ठीक ठाक है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जी एक वो कड़ी थे जिसने वर्षों से कांग्रेस को एक धागे में पिरो रखा था लेकिन उनके देहावसान के बाद क्या कांग्रेस एक जुट रह पायेगी? या मुख्यमंत्री पद की होड़ में गुटों में बांट जायेगी। दो पड़ोसी राज्यों में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस के लिए हिमाचल में सता पाने का सबसे बेहतर और एकमात्र रास्ता है एकजुट होकर चलना। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में जो 3-4 लोग हैं, उनमें से अगर एक भी यहां वहां खिसक लिया तो समझो गई कांग्रेस पानी में।
पुरानी परम्परा को तोड़ कर मिशन रिपीट का सपना संजोए बैठी भाजपा के लिए भी राह आसान नहीं है। जो सकता है कि कांग्रेस उन्हें वॉक ओवर दे दे। लेकिन यदि कांग्रेस एकजुट होकर लड़ती है तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है। मुख्यमंत्री जय राम जी बतौर मुख्यमंत्री रिपोर्ट कार्ड भी खासा सही नहीं है पार्टी के भीतरी लोग भी मानते हैं कि काम तो हुए लेकिन सराज में ही और अधिकारियों पर कमजोर पकड़ भी एक फैक्टर है जो शायद पार्टी के ध्यान में भी होगा। एंटी इनकंबेसी के अलावा महंगाई, बेरोजगारी और ओल्ड पेंशन ऐसे मुद्दे हैं जिनसे भाजपा को पार पाना आसान नहीं होगा।
इन चुनावों को मजेदार जो बनाता है वह है तीसरा मोर्चा। हिविंका के बाद हिमाचल में तीसरा मोर्चा स्थापित करने के जितने प्रयास हुए सब असफल रहे। इस बार एक नया प्रयोग होने जा रहा है, आम आदमी पार्टी। पंजाब में धमाकेदार जीत के बाद आप आत्मविश्वास से भरी है क्योंकि हिमाचल में पंजाब का कुछ असर पड़ना स्वाभाविक है। और दोनों पार्टियों से रूष्ट मतदाता खासकर युवा वर्ग एक बदलाव को आजमाने से पीछे नहीं हटेगा। इन चुनावों में आप क्या हासिल करेगी? सीटें आए न आए, जितनी भी आए लेकिन जिस तरह से लोग इस पार्टी में शामिल होने की होड़ लगाए हुए हैं, इससे इतना तो तय है कि कुछ प्रतिशत वोट शेयर जरूर हासिल करेगी और अगर करती है तो किसका खेल बिगाड़ेगी किसका संवारेगी वक्त ही बताएगा। लेकिन आप के आने से कम मार्जिन वाली सीटों के समीकरण बदल सकते हैं। और हाल के ट्रेंड से लग रहा है कि आप के आने का ज्यादा नुकसान कांग्रेस को झेलना पड़ सकता है। अभी समय है समीकरण बदलते रहेंगे। आगे क्या होगा वक्त बताएगा।