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क्यों मनाया जाता है कुल्लू में दशहरा?

पुरे भारत में जब दशमी के दिन रावण दहन के साथ दशहरे का समापन होता है वहीँ हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के ढालपुर मैदान में दशहरा उत्सव शुरू होता है. कुल्लू का दशहरा सात दिन तक चलने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय उत्सव है. सात दिन तक मेला चलता है, लाखों की संख्या में लोग आते हैं, कुल्लू के हर एक हिस्से से लगभग डेढ़ दो सौ देवी देवता आते हैं. विभिन्न तरह की प्रदर्शनियां लगती हैं. सांस्कृतिक संध्याएं होती हैं जिनमे स्थानीय से लेकर बॉलीवुड और विदेशी कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं.

क्यों मनाया जाता है कुल्लू का दशहरा

सत्रहवीं शताब्दी में 1637-1672 के बीच कुल्लू में जगत सिंह नामक एक राजा हुए. ऐसा कहा जाता है कि उन्हें कहीं से खबर मिली कि टिपरी गांव के एक ब्राह्मण दुर्गा दत्त के पास मोतियों से भरा हुआ एक कटोरा है. तो राजा ने अपने दरबारियों को वो मोती लेन का हुक्म दे डाला. उन दरबारियों ने ब्राह्मण और उसके परिवार को खूब प्रताड़ित किया. ब्राह्मण ने कहा कि वो मोती तब देगा जब राजा उसके गांव आएगा. जब राजा वहां पहुंचा तो ब्राह्मण ने खुद को परिवार के साथ घर में बंद कर लिया और आग लगा दी और मरते मरते राजा को श्राप दे गया.
कुछ समय के बाद राजा को अपने किये पर ग्लानि होने लगी. पछतावे के कारन राजा को भ्रम के कारण चावल में कीड़े और पानी की जगह खून दिखने लगा. राजा के बीमार होने की खबर फ़ैल गयी सरे नीम हकीम को बुला के देख लिया लेकिन राजा ठीक नहीं हुआ. तब कृष्ण दत्त नामक एक बैरागी ने कहा की राजा भगवान राम के आशीर्वाद से ठीक हो सकता है. इसलिए राजा को भगवान राम का चरणामृत पिलाया जाये.

बैरागी की बात मान कर उसके एक शिष्य दामोदर दास अयोध्या के त्रेत नाथ मंदिर से पुजारी के साथ भगवान राम की एक मूर्ति लेन के लिए भेजा गया. इस मूर्ति को सुल्तानपुर के रघुनाथजी मंदिर में स्थापित किया गया. राजा ने बैरागी कृष्ण दत्त की बताई हर एक बात का पालन किया और कुछ समय के बाद बीमारी से ठीक हो गया.

राजा भगवान राम की शक्ति से बहुत प्रभावित हो गया और उसने अपनी राजगद्दी त्याग कर रघुनाथजी का छड़ीबरदार बन गया. इस घटना के बाद रियासत के सभी देवी देवताओं ने रघुनाथजी का आधिपत्य स्वीकार कर लिया. राजा ने सभी देवी देवताओं के कारदारों को विजय दशमी के दिन रघुनाथजी के अभिवादन के लिए कुल्लू में इकठ्ठा होने का आमंत्रण दिया. उसके बाद हर साल कुल्लू के ढालपुर में दशहरा उत्सव मनाया जाने लगा.

रथ यात्रा

कुल्लू दशहरा की शुरुआत होती है भगवान रघुनाथजी की रथयात्रा से. माँ हडिम्बा और बिजली महादेव सहित देवी देवता और कुल्लू के राजघराने के सदस्यों सहित हजारों लोग रघुनाथजी की रथ यात्रा में भाग लेते हैं. रथ यात्रा के बाद सभी देवी देवता अपने शिविरों में चले जाते हैं, जहाँ विभिन्न हिस्सों से आये लोग उनका आशीर्वाद हरहान करते हैं. अगले सात दिनों तक कुल्लू के ढालपुर में एक भव्य मेला चलता है.

कुल्लू दशहरा के नाम है विश्व रिकॉर्ड

2015 के दशहरा में ‘Pride of Kullu’ नाम से कुल्लुवी नाटी का प्रदर्शन किया गया. इस नाटी में 9,892 लोगों ने पारम्परिक वेशभूषा में नाटी का प्रदर्शन किया. इस नाटी को लोकनृत्य ली श्रेणी में सबसे अधिक लोगों के भाग लेने पर गिनीज़ विश्व रिकॉर्ड में समिल्लित किया गया.

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